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आचार्य श्रीराम शर्मा >> अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए

अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि प्रकाशित वर्ष : 1999
पृष्ठ :160
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 4267
आईएसबीएन :00000

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अध्यात्मवाद पर आधारित पुस्तक

अध्यात्म मानवीय प्रगति का आधार


प्राचीनकाल में भारत अपनी उन्नत्ति के चरम शिखर परं विराजमान् था। यह ऋषि-मुनियों का देश जगत्गुरु कहा जाता था। किसी देश का वास्तविक गौरव उसकी भूमि, वनस्पति, प्राकृतिक वैभव अथवा जलवायु के आधार पर निश्चित नहीं होता है। वह होता है, वहाँ के जनगण के विकास, उनके आचार-विचार और आचरण के आधार पर। प्राचीनकाल में इस देश के निवासी आध्यात्मिक जीवन पद्धति अपनाकर नर-रत्नों, महापुरुषों, पराक्रमियों, सद्गुणियों के रूप में सुखी, संपन्न और दीर्घजीवन का गौरव पाते थे। गरीब से लेकर अमीर तक और श्रमिक से लेकर शासक वर्ग तक ऐसा कदाचित् ही कोई व्यक्ति होता था, जो जीवन में अध्यात्मवाद का समावेश करके न चलता हो। इसी आध्यात्मिक जीवन पद्धति के कारण ही यहाँ के लोग बड़े ही आदर्श और उच्चभावी होते थे और अपने साथ-साथ अपने देश को भी गौरवान्वित करते थे।

अध्यात्म मानवजीवन की सफलता का बहुत बड़ा आधार है। जीवन में अध्यात्म का समावेश किये बिना कोई मनुष्य सच्ची सफलता का अधिकारी नहीं बन सकता। लौकिक अथवा भौतिक विभूतियों की उपलब्धि ही जीवन की सफलता नहीं है। मानव-जीवन की वास्तविक सफलता है—अखंड एवं अक्षुण्ण सुख-शांति एवं संतोष की उपलब्धि। अंतर की यह मांगलिक स्थिति आत्मिक स्वास्थ्य पर निर्भर है। आत्मिक स्वास्थ्य के बिना बाह्य जीवन नितांत असफल एवं संतापयुक्त ही रहता है, फिर चाहे उसमें भौतिक विभूतियाँ और लौकिक संपदायें कितनी ही प्रचुर मात्रा में क्यों न उपलब्ध हों।

भारत के समाज हितैषी ऋषि-मुनि, मनुष्य की वास्तविक सफलता और उसके लिए अध्यात्मवाद की आवश्यकता से अच्छी तरह अवगत थे। वे अवश्य ही चाहते थे कि यदि जनसाधारण अध्यात्म के अलौकिक स्तर पर भले ही न पहुँचे तथापि वे अपने जीवन में इतना अध्यात्म तो अवश्य ही ग्रहण करें, जिससे वे अपने सामान्य जीवन में पूरी तरह से सुखी, संतुष्ट और शांत रह सकें। इसी मंतव्य के अंतर्गत उन्होंने अपने जनगण के लिए सामान्य साधना, स्वाध्याय और प्रातः तथा सायंकालीन संध्या-वंदन का नियम अनिवार्य बना दिया था। जो लोग प्रमादवश इस अनिवार्य नियम का पालन नहीं करते थे, उन्हें या तो समाज से बाहर माना जाता था अथवा पतित तथा पापी।

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    अनुक्रम

  1. भौतिकता की बाढ़ मारकर छोड़ेगी
  2. क्या यही हमारी राय है?
  3. भौतिकवादी दृष्टिकोण हमारे लिए नरक सृजन करेगा
  4. भौतिक ही नहीं, आध्यात्मिक प्रगति भी आवश्यक
  5. अध्यात्म की उपेक्षा नहीं की जा सकती
  6. अध्यात्म की अनंत शक्ति-सामर्थ्य
  7. अध्यात्म-समस्त समस्याओं का एकमात्र हल
  8. आध्यात्मिक लाभ ही सर्वोपरि लाभ है
  9. अध्यात्म मानवीय प्रगति का आधार
  10. अध्यात्म से मानव-जीवन का चरमोत्कर्ष
  11. हमारा दृष्टिकोण अध्यात्मवादी बने
  12. आर्ष अध्यात्म का उज्ज्वल स्वरूप
  13. लौकिक सुखों का एकमात्र आधार
  14. अध्यात्म ही है सब कुछ
  15. आध्यात्मिक जीवन इस तरह जियें
  16. लोक का ही नहीं, परलोक का भी ध्यान रहे
  17. अध्यात्म और उसकी महान् उपलब्धि
  18. आध्यात्मिक लक्ष्य और उसकी प्राप्ति
  19. आत्म-शोधन अध्यात्म का श्रीगणेश
  20. आत्मोत्कर्ष अध्यात्म की मूल प्रेरणा
  21. आध्यात्मिक आदर्श के मूर्तिमान देवता भगवान् शिव
  22. आद्यशक्ति की उपासना से जीवन को सुखी बनाइए !
  23. अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए
  24. आध्यात्मिक साधना का चरम लक्ष्य
  25. अपने अतीत को भूलिए नहीं
  26. महान् अतीत को वापस लाने का पुण्य प्रयत्न

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